गर गर्मियाँ इतनी गर्म न होती तो क्या
मैं जान पाती कि सर्दियाँ इतनी सर्द हो सकती हैं?
गर तुम इतने सख़्त न होते तो क्या
मैं जान पाती कि मैं इतनी कोमल हो सकती हूँ?
गर तुम इतने पुरुष न बनते तो क्या
मैं इतनी स्त्री बन पाती?
गर तुम यूँ न जाते तो क्या
मैं यूँ तुम तक आ पाती?
गर तुम मुझ तक न आते तो क्या
मैं तुम से दूर जा पाती?
गर तुम्हारे सवाल इतने बड़े न होते तो क्या
मैं कभी उनका जवाब बन पाती?
नहीं! ये सब शायद ही कभी मुमकिन हो पाता
अगर तुम न होते।
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