देव संस्कृति विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जन संचार केंद्र की ओर से विद्यार्थियों को देहरादून में स्थित नवधान्या के भ्रमण पर ले जाया गया, जहाँ उन्होंने बीजों की महत्ता व उनके संरक्षण के बारे में जाना। नवधान्या, डाॅ. वंदना षिवा द्वारा स्थापित एक बीज संस्थान है। यह बीजों के रूप में पर्यायवरण व जीवन दोनों का संरक्षण करता है। इसका मूल आधार वसुधैव कुटुम्बकम है, जिसके माध्यम से यह भारत की जैव विविधता की रक्षा करता है।
नवधान्य का अर्थ है- नौ बीज, जिनमें यव, शामक, तोगरी, मदगा, कदाले, तंदूला, तिल, माशा व कुलिट्ठा शामिल हैं। 1984 में स्थापित इस गैर सरकारी संस्था को 34 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस दौरान ये पूरे देश में 54 बीज खाते खोल चुके हैं तथा 5 लाख किसानों को प्रशिक्षण प्रदान कर चुके हैं।
जैविक खेती पर ज़ोर देेते हुए इन्होंने बीज विद्यापीठ नामक एक शिक्षण केंद्र की भी स्थापना की है, जो कि उत्तराखंड के देहरादून में स्थित है। नवधान्या जीएमओ सीड्स के सख्त खिलाफ है। 1991 में इनके द्वारा जीएमओ सीड्स के खिलाफ एक अभियान भी चलाया था, जिसका नाम- जीएमओ फ्री कैंपेन है। यह अभियान अब तक चला आ रहा है।
नवधान्या के इन्हीं कार्यों के बारे जानने की ओर विद्यार्थियों ने एक कदम बढ़ाया। संस्थान के अंदर जाने पर श्री दिनेष सेमवाल जी द्वारा सभी का अभिनंदन किया गया। इसके पश्चात सभी को गज़ेबु कहे जाने वाले एक झोपड़े में बैठाया गया। इस दौरान सेमवाल जी ने सभी को बताया कि पिछले वर्ष तीन लाख दस हज़ार किसानों ने आत्महत्या की थी, जिनमें से अधिकतर जेनेटिकली माॅडिफाईड(जीएमओ) बीजों का प्रयोग करते थे। इन बीजों की वजह से न तो फसल अच्छी हो पाई और न ही किसानों के कर्ज़ की भरपाई हुई। अतः उनके पास आत्महत्या करने के अलावा दूसरा कोई रास्ता न था।
वर्षों पहले तक भी हालात कुछ अलग नहीं थे। भारतवासी नील की खेती करने को मजबूर थे, और उसके बाद अत्यधिक मात्रा में पेड़ों को काटा जाने लगा। उस दौरान कुछ लोग पेड़ों के संरक्षण के लिए आगे आए, जिनमें गौरा देवी प्रमुख थी। उन्हीं से पे्ररित होकर डाॅ. वंदना शिवा बीज संरक्षण की ओर अग्रसर हुई।
श्रीमान सेमवाल जी ने कहा कि नवधान्या के प्रयास एक गिलहरी की तरह है, किन्तु वह अपनी ओर सेे आगे बढ़ने की सदा कोशिश करती रहेगी। उन्होंने बीजों के बारे में बात करते हुए कहा कि जिन बीजों का वे संरक्षण करते हैं, वे उनके नहीं, अपितु किसानों के ही हैं। उन्होंने हरित क्रांति के समय के पंजाब व हरियाणा का उदाहरण देते हुए कहा कि अधिक मात्रा में यदि जीएमओ सीड्स का प्रयोग किया जाए व बीजों का संरक्षण न किया जाए तो वह वक्त दूर नहीं जब हज़ारों फ़सलों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। पंजाब की हालत को बयां करते हुए उन्होंने वहाँ से चलने वाली कैंसर ट्रेन का भी ज़िक्र किया।
नवधान्या न सिर्फ प्रकृति पर, अथवा महिलाओं पर भी उचित ध्यान देता है। उनका मानना है कि महिलाएं बेहतर तरीके से प्रकृति की रक्षा कर सकती हैं। इसी संदर्भ में आगे कहते हुए उन्होंने कहा कि- महिलाओं की रक्षा प्रकृति की रक्षा तथा प्रकृति की रक्षा महिलाओं की रक्षा है। महिलाओं का प्रकृति से रिश्ता ही इको फ़ेमिनिस्म है।
फसलों के बारे में बताते हुए उन्हांेने कहा कि वे ऐसे अनाजों की खेती करते हैं जो आपस में एक दूसरे की उत्पादकता व पोषण का काम करती हैं। इनमें मुख्यतः मोटे अनाज शामिल होते हैं, जो समय के साथ कम होते जा रहे हैं। इसका एक मुख्य कारण है कि आज के किसानों में मोनोकल्चर का प्रचलन बढ़ रहा है, जिस कारण एक फसल खराब होने पर दूसरा कोई विकल्प नहीं रह जाता।
अपने बीज खाते(बैंक) का भ्रमण करवाते हुए उन्होंने बताया कि देहरादून का सीड बैंक नवधान्या का पहला बैंक है, जिसे बीजा देवी नामक एक स्त्री ने शुरू किया था। उन्होंने बताया कि उनके बीज बैंक में 730 प्रकार के धान, 41 प्रकार के बासमती, 212 तरह के गेहूं, 32 तरह के जौ, आदि कई तरह के बीज संरक्षित हैं। नवधान्या के 17 राज्यों में 120 बीज बैंक हैं। जिन बीजों का संरक्षण वे करते हैं, उन्हें सिर्फ दो महीनों तक रखा जा सकता है। इन बीजों को बचाने के लिए, बीज बैंक को गोबर से लीपा जाता है तथा कुछ फूल उन बीजों के साथ रखे जाते हैं, ताकि उनका कीट-पतंगों व जीवाणुओं से बचाव हो सके। बीज बैंक के अलावा नवधान्या में गौ पालन भी किया जाता है। वहीं पत्तों व गोबर से जैविक खाद का उत्पादन होता है।
नवधान्या के माध्यम से समय-समय पर प्रशिक्षण पाठ्यक्रम भी चल रहे हैं। दाल यात्रा, बीज सत्याग्रह, पल्स आॅफ लाईफ, आदि अभियान इनमें से कुछ हैं। इनके अलावा यहाँ के आम्रपाली(आम के बाग) में प्रत्येक वर्ष आमोत्सव भी मनाया जाता है।
नवधान्या का वातावरण बहुत ही शांत, साफ और सुंदर है। यहाँ शोध के लिए आए लोगों ने पाया कि नवधान्या में 78 प्रकार के पक्षी हैं। आसपास के अन्य किसी भी जगह पर इतने पक्षी नहीं पाए गए।
अतः नवधान्या जैसे संस्थान का भ्रमण सभी के लिए बहुत लाभदायक व ज्ञानवर्धक रहा। भारत को ऐसे और संस्थानों की आवश्यकता है, क्योंकि वह दिन दूर नहीं जब पेड़ों की तादाद अत्यधिक कम हो चुकी होगी। ऐसे में, ग्लोबल वार्मिंग के इस काल में खाद्य संरक्षण एक विशेष मुद्दा है।
रिपोर्टः वर्षा चौरसिया, निकिता पटेल
पत्रकारिता एवं जनसंचार
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