आज..मेरा दर्पण मुझसे पूछ रहा था
क्या वही है तू
जो पहले थी?
या वक़्त के पहरेदारों ने
तुझे पहचानना छोड़ दिया?
इधर घड़ी की टिक-टॉक टिक-टॉक सुनते हुए
मैं मुस्कुरा रही थी उसके सामने
और वो
भौंहे सिकोड़े देख रहा था मुझे
मुझसे ज़्यादा रंगीन था वो
मैं किसी ब्लैक-एंड-वाइट पिक्चर-सी लग रही थी उसके सामने
मेरा दर्पण
मुझे काम्प्लेक्स दे रहा था
शायद सुपेरिओरटी..
सच..मेरा दर्पण बिलकुल नहीं बदला था
पर मेरे जैसा होकर भी
मुझ-सा नहीं था वो
मुझसे गुफ़्तगु के इंतज़ार में कुछ बूढ़ा हो चला था वो
मानो मैं एडोलसेंट रह गयी
और वो एडल्ट हो गया
मानो वो बोल्ड हो गया
और मुझे क्लीन बोल्ड कर दिया हो
मेरा दर्पण मुझे आँखें दिखा रहा था
कह रहा था
तुम चली तो मेरे साथ थी
फिर पीछे कहाँ रुक गयी?
अब क्या बताती मैं उसे
कि इस गधों की रेस में
खुद को ढूंढ रही थी?
कि जब खुद को ही दूसरों में ढूंढ रही थी
तो तुम्हे क्या देखती?
मेरा दर्पण..
मुझसे नाराज़ था
पर एक वही था जो
रात के अँधेरे में भी
मेरे अंदर ही कहीं छुपा बैठ था
जो मेरा अपना था
मेरा दर्पण नाराज़ था मुझसे
पर मना ही लिया मैंने उसे
अब दुनिया से तो उसे मनाना आसान ही था
क्या वही है तू
जो पहले थी?
या वक़्त के पहरेदारों ने
तुझे पहचानना छोड़ दिया?
इधर घड़ी की टिक-टॉक टिक-टॉक सुनते हुए
मैं मुस्कुरा रही थी उसके सामने
और वो
भौंहे सिकोड़े देख रहा था मुझे
मुझसे ज़्यादा रंगीन था वो
मैं किसी ब्लैक-एंड-वाइट पिक्चर-सी लग रही थी उसके सामने
मेरा दर्पण
मुझे काम्प्लेक्स दे रहा था
शायद सुपेरिओरटी..
सच..मेरा दर्पण बिलकुल नहीं बदला था
पर मेरे जैसा होकर भी
मुझ-सा नहीं था वो
मुझसे गुफ़्तगु के इंतज़ार में कुछ बूढ़ा हो चला था वो
मानो मैं एडोलसेंट रह गयी
और वो एडल्ट हो गया
मानो वो बोल्ड हो गया
और मुझे क्लीन बोल्ड कर दिया हो
मेरा दर्पण मुझे आँखें दिखा रहा था
कह रहा था
तुम चली तो मेरे साथ थी
फिर पीछे कहाँ रुक गयी?
अब क्या बताती मैं उसे
कि इस गधों की रेस में
खुद को ढूंढ रही थी?
कि जब खुद को ही दूसरों में ढूंढ रही थी
तो तुम्हे क्या देखती?
मेरा दर्पण..
मुझसे नाराज़ था
पर एक वही था जो
रात के अँधेरे में भी
मेरे अंदर ही कहीं छुपा बैठ था
जो मेरा अपना था
मेरा दर्पण नाराज़ था मुझसे
पर मना ही लिया मैंने उसे
अब दुनिया से तो उसे मनाना आसान ही था
👌👌
ReplyDeleteशुक्रिया!!
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