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Saturday, 17 November 2018

क्या पतझड़ होना आसान है?

पतझड़ बेरुखी का प्रतीक है
और दुःख का
क्या आसान है पतझड़ के लिए
पतझड़ होना?

यूँ हर गम का कारण
ठहराया जाना?
मन के भारीपन के लिए
बेवजह बातें सुनना?
क्या आसान है पतझड़ के लिए
पतझड़ होना?

न सावन न जाड़ा
किसी को कुछ न कहा जाता है
पतझड़ का मानो हर गम से नाता है
खिड़की पर बैठ यूँ
गिरते पत्तों का कारण
पतझड़ को ही ठहराते हैं
क्या आसान है पतझड़ के लिए
पतझड़ होना?

पतझड़ भी तो आखिर
गिरते पत्तों को देखता है
सूखे पत्तों को कुचला जाता
देखता है
पतझड़ भी तो
फूलों को मुर्झाता देखता है
प्रकृति के सभी रंगों को
फ़र्श पर बिखरता देखता है
क्या आसान है पतझड़ के लिए
पतझड़ होना?

पतझड़ भी देखता है
वो वीरान पेड़
वो उदास चेहरे
पतझड़ भी तो घूँट
बेबसी के पीता है
क्या आसान है पतझड़ के लिए
पतझड़ होना?

पतझड़ खुद को देख
मुस्कुरा क्यों न पाता है?
उन बिखरे पत्तों पर चलकर भी
तो कितने चेहरे मुस्कुराते हैं
और चारों ओर उड़कर
पत्ते हवा में
संगीत घोल जाते हैं

फिर भी पतझड़
सबके गम में गमगीन
उदासी में उदास होता है
और सोचता है
वो सावन, या गर्मी
या कोई और मौसम
क्यों न हुआ?
क्या सच, इतना आसान है
पतझड़ के लिए
पतझड़ होना?

चित्र साभार: puisiayuevie.blogspot.com

Thursday, 15 November 2018

नाबालिग से बालिग- झारखण्ड के 18 साल


 मोर अठरा साल होई गेलक रे!!

जी हाँ, 15 नवंबर, 2000 में बना झारखंड आज 18 वर्षों का हो गया है। यूँ तो झारखंड, बिहार का एक भाग था जो उससे अलग हो गया। पर आज देश-दुनिया में इसकी भी अपनी एक अलग पहचान है। पर कहीं-न-कहीं ये पहचान राजनैतिक उठा-पटक के परदे तले छुप गयी है। प्राकृतिक संपदाओं से परिपूर्ण यह राज्य अपने खनिज की भरपूर मात्रा में उपलब्धता के लिए भी जाना जाता है। मूलतः यहाँ जनजातीय लोगों की अधिक मात्रा और प्रभाव है। झारखंड का अर्थ ही पेड़-पौधों का क्षेत्र है। अतः यहाँ वन संपदा और जनजातीय समाज का अधिक मात्रा में होना लाज़मी है।
खैर, तारीफों के पुल तो हर कोई बाँध देता है। पर वास्तविकता तो यही है कि झारखंड को एक स्थिर सरकार के लिए भी खासी मशक्कत करनी पड़ी। भगवान बिरसा मुंडा के सपने को सच करने की राह बिलकुल भी आसान न रही। और आज भी वो सपना कहीं-न-कहीं अधूरा ही है। विकास की दौड़ में जहाँ भारत के अन्य राज्य आगे बढ़ते जा रहे थे, वहीं कई रूपों में पिछड़ा हुआ यह राज्य बहुत पीछे छूटता दिखाई देता था। झारखण्ड के साथ ही अलग हुआ उत्तराखंड भी विकास के मामले में इससे काफ़ी आगे था।
अंत में जब इसे एक स्थिर सरकार मिली तो फिर तमाम वादों और तसल्लियों के साथ इसे आगे बढ़ाने का काम शुरू हुआ। झारखंड की मुख्य खूबियों में से एक यह है कि यहाँ का हर मुख्य मंत्री जनजातीय समाज का ही रहा है (भले ही इसके पीछे कितना ही राजनैतिक स्वार्थ क्यों न हो!)। वक़्त के साथ यहाँ उद्योग, मल्टी नेशनल कंपनीज़, बड़े- बड़े स्कूल, कॉलेज, अस्पताल सब खुल गए। यहाँ की खनिज सम्पदा का भी भरपूर उपयोग होने लगा। इस ओर एक बड़ा कदम पूरे राज्य में अलग-अलग जगहों पर स्टील उद्योग की स्थापना का था। और आज..यह इस मुकाम पर है जहाँ इसके कई शहरों को 'स्मार्ट सिटी' बनाने की बात की जा रही है।
विकास तो हुआ और हो रहा है, पर ज़मीनी स्तर पर अब भी एक बड़े बदलाव की ज़रूरत है। उम्र के इस दौर पर जब पूरे देश में राजनैतिक उथल-पुथल है, ऐसे में ये देखना रोमांचक होगा कि आने वाले समय में राज्य की सरकार में बदलाव होता है या नहीं, और यदि होता है तो आगे विकास के पैमाने क्या बनते हैं। यह देखना रोमांचक होगा..कि किशोरावस्था से अभी-अभी निकले इस राज्य का यौवन कैसा होगा।

चित्र साभार: झारखंड दर्पण

Trying To Be

I'm not a stranger to myself I'm just trying to be To let someone else Know me The way I tried and lost Though I know myself...