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Sunday, 30 December 2018

चलो! होश में आओ

जहाँ जिस जगह पर हो
वहीं रहोगे तो ना जाने
कहाँ तक जाओगे
कि कुछ दूर चलो
लड़खड़ाओ
संभलो
गिरो, उठो
कभी तो चलना सीख जाओगे

कि इंसान हो
क्या भूल गए हो?
या मुख़ातिब हो आजकल
किसी और ख्याल से?
कि बस चंद लम्हों
कि ज़िन्दगी में
सोचते हो कि
न जाने कहाँ पहुँच पाओगे!

अपनी शाख को संभाले हुए हो
और जड़ें नोच खा रहे हो
कि ये ख्वाब नहीं
तुम बिखर रहे हो
कब बताओ
होश में आओगे?

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