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Tuesday, 26 December 2017

खुद को भी इंसान बनाकर बताओ तो जाने

हाँ पंख नहीं है तुम पे
फिर भी आकाश में उड़ना आसान है
कभी ज़मीन पर बिन लड़खड़ाये
चलकर बताओ तो जाने
हर वक़्त दौड़ते फिरते हो
आगे बढ़ने की होड़ में
एक लम्हा थमकर
जीकर बताओ तो जाने
चेहरे पे चेहरे लगा रखे हैं
कचरे से चेहरा सजाये बैठे हो
कभी अपने-आप को भी सबको
दिखाकर बताओ तो जाने
ईंटों से दीवार बनाते जा रहे
सपनों के संसार बनाते जा रहे
कभी मिट्टी के टीले
बनाकर बताओ तो जाने
हर रोज़ नए मकान सजाते रहते हो
रिश्तों के बाज़ार बनाते जा रहे
मकान तो हर कोई बना लेता है
अपनों से घरबार
बनाकर बताओ तो जाने



2 comments:

  1. जान रहे है हम प्रतिभा को, बहुत खूब।

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