अच्छा लगता है ना
कभी-कभी रूठ जाना
और नाराज़ होकर
एक कोने में बैठ जाना
इस इंतज़ार में
कि एक फ़ोन आएगा
तुम्हें मनाने के लिए
ना जाने कितनी ही बार
ऐसे ही रूठकर मैं
फ़ोन के इंतज़ार में बैठी हूँ
बिलकुल आज की तरह
पर तुम हो कि
अपना अल्हड़पना छोड़ते ही नहीं
कभी दिनों, कभी हफ्तों
तो कभी महीनों बाद
एक फ़ोन लगाते हो
और कहते हो..
कि जल्दी आऊंगा
पर इस बार
ना तुम्हारा फ़ोन आया
ना ही तुम
ना जाने कब से बैठी हूँ
यूँ ही रूठकर
चलो अब बस भी करो न..
अब थक गई हूँ मैं
तुम्हें पता है..
वो रंगोली अब भी वहीं है
मेरी चौखट को रंगीन बनाती हुई
सब कहते हैं उसे मिटा देने को
पर मुझे पता है
कि तुम ज़रूर आओगे
अब आ भी जाओ!!
Heartwarming😇
ReplyDeleteThank you so much!!😊
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