मेरी चौखट आज रंगीन है
सुबह से बेचैन थी मैं..
क्या करती
तुम आने वाले हो
ये खबर सुनकर
ख़ुशी का ठिकाना ही न रहा
रंग बटोरने लगी
नीले पीले गुलाबी नारंगी
ये रंगोली तुम्हारे लिए ही
बनायी थी
बस अब आना रहा गया है
तुम्हारा
तुम आओगे न?
तुमने वादा किया था मुझसे..
हाँ! मुझे मालूम है तुम आओगे
पर फिर..
सब मान क्यों नहीं रहे?
सब क्यों कहते है तुम नहीं आओगे?
अरे! ऐसे कैसे
बॉर्डर पर ही तो गए थे
तुम्हारा आना तो तय ही था
मैं कहती थी ना तुम्हें
इतना पागलपन सही नहीं है
किसी दिन ले डूबेगी तुम्हें
अपनी माँ से इतना प्यार
कौन करता है भला!
तुम्हारी माँ भी तो फिक्र नहीं
करती तुम्हारी
और सिर्फ तुम्हारी ही क्यों
ना जाने कितने ही बेटे है उसके
सबको यूँ अपनी गोद में सुलाती है
और घर ही नहीं आने देती
और बदले में..
बदले में देती है
गुरुर..गर्व
क्या करूँ मैं इनका
जब तुम ही नहीं हो
चलो अब बातें बहुत हुई
अब जल्दी घर आ जाओ
तुम्हारी रंगोली
और तुम्हारी बीवी
इंतज़ार कर रही है तुम्हारा
तुम्हें अपनी माँ कि गोद से
उठना ही होगा
नहीं तो मैं नाराज़
हो जाऊँगी!!
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