आज बता ही दो मुझे
कि मैं क्या लगती हूँ तुम्हें
एक इंसान..एक लड़की..एक दोस्त
या यूँ ही कोई पड़ा हुआ खिलोना
जिसके साथ खेलने तक का रिश्ता है बस तुम्हारा
चलो मत बताओ
आज मैं ही बताती हूँ तुम्हें कि मैं क्या हूँ
एक लड़की हूँ मैं...हाँ सुना तुमने..
एक एहसास हूँ मै
मै एक दरिया हूँ जिसे तुक पार नहीं कर सकते
मैं एक नदी हूँ जिसकी धारा को तुम नहीं रोक सकते
मैं कोई डिसाईनर आउटफिट नहीं हूँ
फुटपाथ की एक ड्रेस हूँ जो खंरोच लगने पर भी साथ देती है
2.5 इंच की हील नहीं हूँ
पापा की कोल्हापुरी चप्पल हूँ जो टूट चुकी है पर अब भी चल सकती है
ब्रैंडेड आइलाईनर नहीं हूँ
वो काजल हूँ जो घर के दीयों की याद दिलाता है
नहीं हूँ मैं कोई मेकअप बाॅक्स
वो धूल हूँ जो धूल होने पर भी हाथों पर जमने के बाद खुशबू-सी लगती है
नहीं हूँ तुम्हारा पंचिंग बैग
जिसपर अपना गुस्सा उतार सको तुम
और सुन लो...तुम्हारा बिस्तर नहीं हूँ मैं...बिलकुल नहीं
जिसपर दिन भर की थकान के बाद तुम सो सको
ना वो जिस्म हूँ
जिससे तुम अपनी भूख मिटा सको
ना वो शराब की बोतल हूँ
जिसे गुस्से में, दर्द में पीकर नशे की लत लग जाए तुम्हें
हाँ...मैं एक लड़की हूँ
मेरी एक रूह है
जिसे मारने का हक किसी को नहीं है...किसी को भी नहीं।
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